Case filed against farmers back
BREAKING
हरियाणा बीजेपी अध्यक्ष बडौली पर रेप केस; महिला गवाह ने कैमरे पर कहा- मैंने बडौली को होटल में नहीं देखा, मेरी सहेली दोस्त कहने लायक नहीं नागा साधुओं को नहीं दी जाती मुखाग्नि; फिर कैसे होता है इनका अंतिम संस्कार, जिंदा रहते ही अपना पिंडदान कर देते, महाकुंभ में हुजूम नागा साधु क्यों करते हैं 17 श्रृंगार; मोह-माया छोड़ने के बाद भी नागाओं के लिए ये क्यों जरूरी? कुंभ के बाद क्यों नहीं दिखाई देते? VIDEO अरे गजब! महाकुंभ में कचौड़ी की दुकान 92 लाख की; मेला क्षेत्र की सबसे महंगी दुकान, जमीन सिर्फ इतनी सी, कचौड़ी की एक प्लेट 40 रुपये Aaj Ka Panchang 15 January 2025: आज से शुरू माघ बिहू का पर्व, जानिए शुभ मुहूर्त और पढ़ें दैनिक पंचांग

किसानों पर दर्ज केस वापस

Case filed against farmers back

Case filed against farmers back

हरियाणा की भाजपा-जजपा गठबंधन सरकार ने अपने वादे के मुताबिक किसान आंदोलन के दौरान दर्ज हुए केस वापस लेने शुरू कर दिए हैं। यह सरकार की ईमानदारी और जनता के प्रति उसके कर्तव्य का उदाहरण है। तीन कृषि कानूनों के खिलाफ किसानों ने राज्य में सरकार से जुड़े लोगों का भारी विरोध किया था। हालात ऐसे थे कि मुख्यमंत्री और उपमुख्यमंत्री को प्रदेश में अपने कार्यक्रमों में सम्मिलित होने से रोका जा रहा था, वहीं मंत्रियों, विधायकों और अधिकारियों का भी भारी विरोध हो रहा था। ऐसे में पुलिस को कार्रवाई करते हुए जहां प्रदर्शनकारियों पर केस दर्ज करने पड़े वहीं कुछ को जेल भी जाना पड़ा। किसान आंदोलन ने किसानों और सरकार के बीच अविश्वास की खाई खोद दी थी, जोकि साल भर तक लगातार चौड़ी होती गई। हालांकि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की ओर से कृषि कानूनों को वापस लेने और संसद में भी इनके लिए प्रस्ताव पारित करने के बाद यह विवाद थम गया। वास्तव में एक लोकतांत्रिक सरकार की यह जिम्मेदारी बनती है कि वह जनता के हित में फैसले ले, हालांकि केंद्र सरकार ने खुद माना है कि वह किसानों को इन कृषि कानूनों के बारे में समझाने में विफल रही। किसी भी निर्वाचित सरकार के मुखिया की ओर से ऐसी टिप्पणी काफी साहस की बात होती है, क्योंकि इससे सरकार की विफलता का संदेश जाता है, लेकिन बावजूद इसकी परवाह किए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कृषि कानूनों को वापस लेकर किसानों से क्षमा याचना की। इसके बाद यह तय हो गया था कि किसानों पर दर्ज केस वापस ले लिए जाएंगे।

रिपोर्ट के मुताबिक एक साल तक चले आंदोलन के दौरान हजारों किसानों पर 272 मुकदमे दर्ज किए गए थे, इनमें से 82 को प्रदेश सरकार वापस ले चुकी है। सरकार ने रेलवे ट्रैक और जीटी रोड जाम करने से जुड़े 82 मुकदमों को रद्द करने की अनुमति केंद्र सरकार से मांगी है। सामने आया है कि केंद्र ने इन मुकदमों  को वापस लेने की प्रदेश सरकार को अनुमति दे दी है। सरकार की ओर से बताया गया है कि तमाम औपचारिकताएं पूरी होने के बाद इन मुकदमों को खारिज कर दिया जाएगा। कृषि कानूनों के मामले में किसानों की जद्दोजहद एक तरफ थी तो दूसरी ओर राजनीतिक मोर्चा भी खुला हुआ था। तमाम विपक्षी दलों के लिए एकमात्र मुद्दा कृषि कानून थे। हालांकि इन विपक्षी राजनीतिक दलों जिनमें कांग्रेस का नाम प्रमुखता से लिया जाना चाहिए, के नेता खुद सत्ता में रहते हुए कृषि क्षेत्र में सुधार के पैरोकार थे, उन्होंने इस संबंध में रिपोर्ट भी तत्कालीन प्रधानमंत्री को सौंपी थी, लेकिन बाद में भाजपा की केंद्र सरकार अगर ऐसे कानूनों को ले आई तो वे विपक्षी नेता इसके विरोध में उतर आए। कृषि कानूनों की उपयोगिता पर सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई हो रही है, शीर्ष अदालत ने इसके लिए कमेटी का भी गठन किया है। जाहिर है, बावजूद इसके राजनेताओं के लिए इन कृषि कानूनों के अपने-अपने मायने हैं। कांग्रेस ने जहां कृषि कानूनों का विरोध किया, वहीं आंदोलन के दौरान उपद्रव करने वाले लोगों का भी समर्थन किया। विरोध को लोगों की मौलिक आजादी बताया गया।  हालांकि इसी मौलिक आजादी की वजह से दूसरे लोगों के मौलिक अधिकार और स्वतंत्रता खतरे में पड़ती रही।

पूर्व मुख्यमंत्री एवं नेता विपक्ष भूपेंद्र सिंह हुड्डा ने बीते दिनों गठबंधन सरकार पर आरोप लगाया था कि गठबंधन सरकार ने किसानों पर दर्ज हुए मामलों को वापस लेने का वादा किया था, लेकिन अब उसे पूरा नहीं किया जा रहा। जाहिर है, नेता विपक्ष के आरोप अपनी जगह थे, क्योंकि सरकार की कार्यप्रणाली पर  नजर रखना ही विपक्ष का कार्य है। हालांकि अब गठबंधन सरकार ने जहां केस वापस लेने शुरू कर दिए हैं, वहीं नेता विपक्ष पर किसानों को गुमराह करने के आरोप लगाए हैं। सरकार और विपक्ष के बीच यह राजनीतिक दांवपेच शायद ही कभी खत्म हो, क्योंकि कोई भी पक्ष खुद को पराजित नहीं देख सकता। जिस समय किसानों पर केस दर्ज हुए, वह प्रशासनिक कार्रवाई थी। हरियाणा सरकार ने किसी भी आंदोलन के दौरान जन संपत्ति को हुए नुकसान की भरपाई के लिए कानून का मसौदा तैयार किया है, इसे वक्त की मांग बताया गया है। यह इस फलसफे पर कायम है कि जो करेगा वह भरेगा। उपद्रवियों की रोकथाम के लिए ऐसा सख्त कानून जरूरी है, हालांकि विपक्ष को इस पर कड़ी आपत्ति है। विपक्ष को हमेशा अपने राजनीतिक हित ही नहीं देखने चाहिएं, अपितु विस्तृत सोच का प्रदर्शन करते हुए सरकार के कार्यों का समर्थन भी करना चाहिए।

गौरतलब है कि पांच राज्यों के विधानसभा चुनाव के मद्देनजर कृषि कानूनों को वापस लेने का विपक्ष ने आरोप लगाया था। यह भी कहा गया है कि चुनाव के बाद सरकार फिर इन कानूनों को लाएगी। भाजपा के एक-दो सांसदों की ओर से भी ऐसे बयान सामने आए हैं। हालांकि अब खुद केंद्रीय कृषि मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर के हवाले से सामने आया है कि इन कानूनों को भविष्य में दोबारा लागू करने की सरकार की कोई योजना नहीं है। इस समय एमएसपी की गारंटी किसानों की सबसे बड़ी मांग बनी हुई है, इसके लिए किसान आंदोलनकारी फिर से एकजुट हो रहे हैं। हालांकि केंद्र सरकार की ओर से अभी तक एमएसपी की गारंटी के संबंध में ज्यादा पुष्ट तथ्य सामने नहीं आए हैं। वास्तव में कृषि क्षेत्र के उत्थान के लिए सुदृढ़ प्रयास जरूरी हैं, भाजपा सरकार ने इसके प्रयास किए थे, भविष्य में इस क्षेत्र के विकास के लिए क्या योजनाएं बनती हैं, वह देखने वाली बात होगी।